ठहराव


ठहराव
गुजर जो कहर   गया है
  ये जीवन भी ठहर गया है .............
 देख सिसकती ये हालत
 खो चुकी जीने की चाहत
भुलाने की कोशिश में
 और गहरी होती याद
हमसाया ही  बन गया
कैसा  कठोर निषाद
मृत हो गया है मन
जैसे पी ज़हर गया है
गुजर जो कहर   गया है
  ये जीवन भी ठहर गया है .......... 
  बिछड़ा साथी, उजड़ा कारवां
चिलचिलाती धूप में भी
अंधियारे का आभास है
मंजिल ओझिल, राहें गुम
गम भरी साँसों की भी
अब नहीं कोई आस है
खोया - खोया सा जहाँ
कैसी निस्तब्धता छाई है
लूट ले गया सारी    रौनकें
बीत ये जो पहर गया है
गुजर जो कहर   गया है
  ये जीवन भी ठहर गया है .......... 
krishan kayat
http://krishan-kayat.blogspot.com

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