" आरजू "
चमकती रेत में ,
पानी का सिर्फ धोखा था ,
मैंने समझा मेरा हमदम है,
पर वह तो हवा का झोंका था ,
जिसकी दस्तक से मैं चौंका था .
जिनके दीदार को,
तरसती थी आँखें ,
जो होते वो सामने ,
तो खिल जाती थी बांछे ,
पर जाने वाले ,
कब मुड़ कर आते हैं ,
उनके तो वादे ही ,
दिल को तड़पाते हैं ,
लाख यतन करें ,
चाहें छिपाने का ,
पर ये गम ,
कहाँ छिप पाते हैं ,
इन्हीं विचारों में डूब ,
ख्यालों में खो गया ,
आरज़ू लिए मिलन की ,
"कायत" गहन निद्रा में सो गया ,
दिल को छूने वाली रचना
जवाब देंहटाएं