"झूठा सनम"
मेरी कसम उठाकर दुनिया के आगे ,
कर दिया मेरे प्यार से इन्कार उसने
एक दिन इसी दुनिया की कसम उठाकर ,
मुझसे प्यार का किया था इकरार जिसने
ऐ जिन्दगी तू ही बता ...............
उसकी किस कसम का एतबार करूँ मैं
समझा न जिसने नफरत के काबिल भी मुझे
क्या उसी से अब प्यार करूँ मैं ?
जान गया इस दुनिया में
बस नाटक है ये प्यार
कसमें ,वादे ,प्यार , मोहब्बत .........
सब झूठ का है व्यापार
गफलत में जीता रहा अबतलक
सच का कड़वा घूँट ये पीऊँ कैसे
जिंदगी बन गया जो ....
चाहे झूठा ही निकला ,
उस सनम के बिना अब जीऊँ कैसे
उस सनम के बिना अब जीऊँ कैसे ..........
कृष्ण कायत http://krishan-kayat.blogspot.com/
मन के एहसास को बखूबी लिखा है
जवाब देंहटाएंकल 21/05/2012 को आपकी यह पोस्ट http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
जवाब देंहटाएंधन्यवाद!
बहुत सुन्दर भावपूर्ण रचना...
जवाब देंहटाएंप्रेमकी अथाह पीड़ा को शब्द दिए है..
जवाब देंहटाएंबेहतरीन भावपूर्ण रचना...
भावमय करती शब्द रचना ।
जवाब देंहटाएंखूबसूरत एहसास...
जवाब देंहटाएंAap sab ka bahut bahut Dhanyavad.............
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