ज़माना
ये ज़माने को क्या हो गया है ............ -२
कोई पूर्व में है जाग रहा ,
कोई पश्चिम को है भाग रहा
आराम की भी नहीं फुर्सत
चलते - फिरते आँखें मूंदें
तलाशते सब इधर उधर
जाने किन तृष्णाओं को ढूंढें
मिल गया है खास या फिर
सभी का कुछ खो गया है
ये ज़माने को क्या हो गया है......................... -२
मलमल के कोमल गद्दों पर
वो सोने की चेष्टा है कर रहा
नींद नहीं उसकी आँखों में
किसी अनजानी सोच से है डर रहा
उधर एक लाचार - फटेहाल
सड़कों पर है घूम रहा
लिए मन में जीने की आस
आराम को है जगह दूंढ़ रहा
लो, वो देखो थक हार कर
फूटपाथ पर ही सो गया है
ये ज़माने को क्या हो गया .......................... -२
घुट घुट कर हैं सब जी रहे
बगावती होंठों को है सी रहे
आंसुओं का सैलाब
दिलों में रोक रखा है
बूँद भी न गिरने पाए
काँटों से जोख रखा है
छोड़ा किसने सब्र का दामन
भीगा है जो जहाँ का आँगन
देख हालत संसार की
आज आसमां भी रो गया है
ये ज़माने को क्या हो गया है.................... -२
उगाई है जो फसल
वो ही तो काटेंगे
दुःख का भरा है हर कोई
सुख कौन कहाँ से बांटेंगे
न वो पहले सी बहार
न फूलों की मादकता है
रिश्वतखोरी , भ्रष्टाचार
अत्याचार व अराजकता है
फसलें जैसी पनप रही हैं
कौन विष बीज बो गया है
ये ज़माने को क्या हो गया है ....................... -२
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