खामोश


खामोश

मेरे नसीब में
तेरा साथ
था ही नहीं
तो तुझको
क्या दोष दूं मैं ................ 
मदहोश कर गया 
वो साकी  मुझे 
अब  तलक
नींद में हूँ 
किसी और को
क्या होश दूं मैं ..............
इस कदर
तोडा जालिम ने 
कि खुद ही
संभल  न पाया
तो किसी को
क्या जोश दूं मैं ................... 
जब  पलते नहीं
मुझसे मेरे ही
अरमान तो
किसी के अरमानों को  
क्या पोस दूं मैं .......................
तडपता रहेगा
ये दिल
तेरी याद में
यूँ ही " कायत "  
जब तक 
ये प्राण
न कर खामोश दूं मैं .....................
 
कृष्ण कायत 
 

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