" साथ "
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 वो साथ चलने का
वादा करे तो
 मंजिल को
भूल जाऊं मैं
होगा जो साथ वो
तो मंजिल इक सजा है
क्यूंकि...........
 उसके साथ होने से
पहुँचने में नहीं
सफ़र में ही मजा है ......   कृष्ण कायत 


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टिप्पणियाँ


  1. बढ़िया प्रस्तुति
    डैश बोर्ड पर पाता हूँ आपकी रचना, अनुशरण कर ब्लॉग को
    अनुशरण कर मेरे ब्लॉग को अनुभव करे मेरी अनुभूति को
    lateast post मैं कौन हूँ ?
    latest post परम्परा

    जवाब देंहटाएं

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