रंग बदलते
लोगों के
रंग लगाऊं
क्या मैं यार
मतलब के लिए
जताते हैं
अपनापन
कैसे कह दूं
इसको प्यार
अरमान उमंगें
दमित हैं मन में
कुत्सित कुंठा का
हुआ प्रसार
उच्छश्रृंखलता और
फूहड़पन है
अय्याशी के
सजे हैं बाजार
पाप-पुण्य के
अर्थ हैं बदले
कैसा पावन
है ये त्यौहार
रंग बदलते
लोगों के
रंग लगाऊं
क्या मैं यार...........
  कृष्ण कायत

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