किस कद्र गिर गए हैं कुछ लोग
आज ज़माने में
दिखावा करते हैं प्यार का
नफरत को छुपाने में
मक्कारी और स्वार्थ छिपा है
प्यार के अफ़साने में
घटिया सोच नीयत में खोट
पर सभ्य बनते हैं ज़माने में
कसमें वादे प्यार वफ़ा के मायने नहीं
ढोंग हैं हर तराने में
धोखा है हर बात में उनकी
नई चाल हर बहाने में
जान लिया पहचान लिया
फिर भी "कायत" नाकाम रहा
इस दिल को समझाने में...
http://krishan-kayat.blogspot.com
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 31 - 03 - 2016 को चर्चा मंच पर चर्चा - 2298 में दिया जाएगा
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
सटीक।
जवाब देंहटाएं