नाकाम

















 किस कद्र गिर गए हैं कुछ लोग 
 आज ज़माने में 
 दिखावा करते हैं प्यार का 
 नफरत को छुपाने में
 मक्कारी और स्वार्थ छिपा है
 प्यार के अफ़साने में
 घटिया सोच नीयत में खोट 
 पर सभ्य बनते हैं ज़माने में
 कसमें वादे प्यार वफ़ा के मायने नहीं
 ढोंग हैं हर तराने में
 धोखा है हर बात में उनकी 
 नई चाल हर बहाने में
 जान लिया पहचान लिया 
 फिर भी "कायत" नाकाम रहा 
 इस दिल को समझाने में...


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