युद्ध का चाव

          "युद्ध का चाव "                           

 
 
 
 
 
 
 
 
 
चाव होगा तुम्हें युद्धों का
मैं तो हर रोज ही
युद्ध करता हूं .....
भूख, गरीबी, लाचारी से ।
बढ़ती कीमतें, घटती आमदनी
कभी हुक्मरानों की मक्कारी से ।।
मैं ही करता हूं
तुम्हारे कारखानों में मजदूरी ,
खेतों में अन्न, फल बागानों में
मैं ही उपजाता हूं ।
रोजी की खातिर
सुरक्षा को तुम्हारी
सीमा पर भी
मैं ही मर जाता हूं ।।
ठगते हो मुझे ही तुम
धर्म का खौफ दिखाकर ।
बहका जाते हो कभी 
मुझे मेरी कौम बताकर ।।
फंस कर चालों में तुम्हारी
दंगे भी मैं ही करता हूं 
चाव होगा तुम्हें..........
मक्कारी का खेल खेलकर 
मत बहकाओ
मुझ जैसे नादानों को ।।
युद्ध का इतना चाव है तो
सीमा पर भेजो
तुम अपनी संतानों को ।।
झांसों में आकर
हर बार तुम्हारे
"कायत" मैं ही
राजा चुनता हूं
चाव होगा तुम्हें युद्धों का
मैं तो हर रोज ही
युद्ध करता हूं.........।।
कृष्ण कायत 

टिप्पणियाँ